सुकून वाला खाना - दाल-चावल
Simply Recipes
हम भारतीयों को सुकून दो ही चीज़ों से मिलता है- चाय और घी में छौंकी घर की बनी दाल. न जाने इन साधारण सी चीज़ों में क्या जादू है कि मूड कितना भी खराब हो तुरंत ठीक हो जाता है. दाल और चावल से हर इंडियन ख़ुद को कनेक्टेड महसूस करता है. हमारे यहां कई तरह की दाल होती है. अंकुरित चने मूंग की भी दाल बनती है और मटर की भी. तड़के वाली दाल भी बनती है और बघार वाली भी. यहां तक कि सब्ज़ियों और मांस-मछली में डालकर भी दाल बनाई जाती है!
वेद-पुराणों में दाल का उल्लेख
Whisk Affair
फ़ूड हिस्टोरियन के टी अचाया ने अपनी किताब इंडियन फ़ूड: अ हिस्टोरिकल कम्पेनियन में लिखा है कि दाल का उल्लेख यजुर्वेद, ऋग्वेद, मार्कंडेय पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है. उनका ये भी कहना है कि श्री राम को 'कोसुमल्ली' बहुत प्रिय थी, इसमें खीरा और कच्चा नारियल और नींबू का रस भी मिलाया जाता था. वैदिक काल में दाल ग़रीबों की भूख मिटाती थी ऐसा के टी अचार्या का कहना है.
बौद्ध और जैन साहित्य में दाल का उल्लेख
Kannamma Cooks
400 ईसा पूर्व के बौद्ध और जैन साहित्य में भी दाल के बारे में लिखा गया है. इन टेक्स्ट्स में मटर की दाल, अरहर, तुअर, चने की दाल का उल्लेख है. साथ ही ये भी कहा गया है कि ये एलेक्ज़ैंडेरिया से भारत पहुंची. 350 ईसा पूर्व के बाद राजमा हमारी थाली में आया. बौद्ध काल में दाल को भरकर एक बड़े परांठे जैसी स्वीट डिश बनाई जाती थी.
दक्षिण भारतीय खाने में भी दाल का भरपूर इस्तेमाल
दक्षिण भारतीय खाने में दाल का भरपूर इस्तेमाल होता है. चाहे वो इडली हो, डोसा हो, वड़ा हो या सांभर. 2000 ईसा पूर्व में पूर्णिमा और दिवाली के दिन दाल भरे मीठे परांठे, वड़े बनाए जाते थे. तिरुपती मंदिर में भी भगवान वेंकटेश को उड़द दाल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं. अचाय के अनुसार, 30 रसोइये रोज़ाना 70 हज़ार लड्डू तैयार करते हैं.
भारत के पुराने साहित्यों में भी उल्लेख
दक्षिण भारतीय खाने में दाल का भरपूर इस्तेमाल होता है. चाहे वो इडली हो, डोसा हो, वड़ा हो या सांभर. 2000 ईसा पूर्व में पूर्णिमा और दिवाली के दिन दाल भरे मीठे परांठे, वड़े बनाए जाते थे. तिरुपती मंदिर में भी भगवान वेंकटेश को उड़द दाल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं. अचाय के अनुसार, 30 रसोइये रोज़ाना 70 हज़ार लड्डू तैयार करते हैं.
भारत के पुराने साहित्यों में भी उल्लेख
चंद्रगुप्त मौर्य की शादी के दावत में भी थी दाल
दाल सदियों पहले से हम भारतीयों के खाने का अहम हिस्सा रही है. The Better India के एक लेख के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य की शादी के दावत में घुघनी (एक तरह की दाल) थी. राजपूत राजकुमारी जोधा बाई ने मुगल खाने में पंचमेल दाल को जगह दिलाई. ये दाल मुग़लों को इतनी पसंद आई कि शाह जहां ने जब तक गद्दी संभाली, ये शाही पंचमेल दाल बन चुकी थी.
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