जानिए क्या थी अजामिल की कहानी जिसने मृत्यु को भी झांसा दे दिया था

 अजामिल की कहानी हम में से कई लोग जानते है और कई लोगो को इसके बारे में नही पता, आज हम उन्ही के जीवन से जुडी बात आपको बताने वाले है जिसमे उन्होंने मृत्यु को भी झासा दे दिया था! अजामिल एक ब्राम्हण था जो कई वर्षो पहले कुब्जा शहर में रहता था! वह ऐसे युवा व्यक्ति थे जिन्होंने अपने वंश और सामाजिक पालन-पोषण के कारण धार्मिक जीवन की सभी प्रथाओं को हमेशा बनाये रखा! उनके चरित्र की यदि हम बात करे तो अजामिल बहुत ही सदाचारी और शुद्ध र्हदय वाले व्यक्ति थे, तपस्या करते थे और वेदों और अन्य शास्त्रों के ज्ञाता थे, और शास्त्रों में लिखे आचरण का पालन भी करते थे ! वह अपने माता-पिता और बड़ो का सम्मान करते थे और सभी की सहायता करने में हमेशा तत्पर रहते थे ! वे अपनी वाणी पर संयम रखते थे और अपनी इन्द्रियों पर भी नियंत्रण रखते थे !

लेकिन एक दिन उन्होंने अपनी इन्द्रियों में संयम न रखते हुए और सभी शास्त्रों का अध्ययन और पालन न करते हुए अलग ही जीवन शेली अपनाई ! उन्होंने अपनी तपस्या के बिलकुल विपरीत व्यवहार किया, उन्हें एक वेश्या से प्यार हो गया ! अजामिल को वेश्या और उसके 10 बेटो को सहारा देने का कोई सही तरीका नही दिखाई दिया और वह जुआ, डकेती, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी गलत चीजे करने लगा ! उसने अपने बचे हुए वर्षो को तब तक बिताया जब तक वह 88 वर्ष का हो गया ! और हमारी आगे की कहानी अब शुरू होती है ! 


कहानी कुछ इस प्रकार है .....

अजामिल ने अपने सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा! नारायण से उसके माता-पिता अधिक स्नेह करते थे, अजामिल उनके पुत्र से अधिक स्नेह रखते थे ! अपने जीवन में लीन अजामिल इस बात को भूल गये थे कि उनका जीवन काल समाप्त होने वाला है, उनकी मृत्यु निकट आरही है! एक दिन अजामिल को तीन भयंकर जीव दिखाई दिए उनके पास बड़ी-बड़ी रस्सिया थी वे मुस्कुराते हुए अजामिल की तरफ बुरी तरह से इशारा कर रहे थे !ये तीनो यम के सेवक थे जिन्हें अजामिल पहचान न सका! 


अजामिल डर गया और डर के मारे अपने पुत्र को आवाज लगाने लगा- नारायण,,,,,नारायण! उसके इस तरह चिल्लाने पर भगवान् विष्णु(जिन्हें नारायण भी कहते है) के सेवक दोड़ते-दोड़ते आये और यम के सेवको को उनके काम से रोकने लगे ! तब यम के सेवको ने गुस्से से पूछा- “धर्मराज के आदेश में बाधा डालने वाले आप कौन है न्याय के भगवान्?” तब भगवान् विष्णु के सेवको ने एक चुनोतिपूर्ण उत्तर दिया- “यदि आप वास्तव में धर्मराज के सेवक है तो आप हमे धर्म का सार और उनके संकेतो के बारे में बताये” ! 


धर्म-अधर्म, गुण-अवगुण पर शुरू हुई बहस के क्रत्यो का प्रभाव 

उसके बाद यम के सेवको ने अजामिल के पिछले इतिहास का वर्णन किया, उन्होंने बताया की शास्त्रों का ज्ञान हुते हुए भी अजामिल ने अधर्म का आचरण अपनाया ! इसके अलावा उहोने यह भी कहा की आप विष्णु के सेवको को यहा आने की और हमारे कार्य में बाधा डालने की आवश्कता नही थी क्योकि अजामिल अपने पुत्र नारायण को पुकार रहा था ! लेकिन विष्णु के सेवक, यम के सेवक की बात को नजरंदाज करते हुए अपनी बात पर अड़े रहे और कहा कि- “ जो कोई भी भगवान् के नाम का उच्चारण करता है यहा तक कि दुर्घटना के समय भी सुरक्षा के लिए भगवान् को पुकारता है, तब उनकी मदद के लिए हम हर सम्भव प्रयास करते है”!  

इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि- “ जैसे आग ईंधन की खपत करती है ठीक उसी प्रकार भगवान् का नाम चाहे महानता के ज्ञान से लिया हो या बीना जप के लिया हो वह एक अधर्मी के सभी पापो को नष्ट कर देता है ! यह एक ऐसी दवा है जिसके गुणों से अनजान अधर्मी के सारे बुरे कर्मो का प्रभाव कम हो जाता है! 

आखिरकार थक हार कर यम के सेवक वापस खाली हाथ लौट जाते है, उसके बाद अजामिल तुरंत हरिद्वार के लिए रवाना हो गये और वहा नदी के तट पर बैठकर भक्ति के योग का अभ्यास करने लगे! 

जो लोग मुक्ति की इच्छा रखते है उनके लिए भगवान् के नाम के जप से अधिक शक्तिशाली और कुछ नही है, क्योकि इसके द्वारा अजामिल जैसे अधर्मी भी बच गया! श्रीमद् भगवतगीता में भी लिखा है कि हरी के नाम का जप यदि विश्वास और भक्ति के साथ किया जाए तो आपको मनचाहे परिणामो को प्राप्ति होती है ! 


और जो भी दोस्त श्लोक या स्कन्द के बारे में पूछ रहे है, उनके लिए –

श्रीमद् भागवत पुराण वेदव्यास द्वारा लिखा गया था जिन्होंने वेदों को फिर से संगठित किया, ताकि वैदिक ऋषियों की शिक्षाओ और रहस्यों को बेहतर तरीके से समझा जा सके !और गुरु से शिष्य तक प्रसारित किया जा सके! अजामिल की कहानी (स्कन्द-VI, अध्याय 1) कहानियों में से एक है

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