वो CM जिसके खाते में ₹500 निकले, रिक्शे पर चलते थे, परिवार के लिए नहीं बना पाए घर

बिहार की राजनीति में सिर्फ़ ऐसे ही नेता नहीं हैं जिन्होंने. बिहार की मिट्टी ने ऐसे नेताओं को भी जन्म दिया है जिन्होंने पूरे देश को राजनीति का असल मतलब समझाया. ऐसे ही एक नेता हुए कर्पूरी ठाकुर. इस शख्स में खुद को लेकर ज़रा मोह नहीं था, इन्होंने अपना जीवन जनता पर लुटा दिया.

कर्पूरी ठाकुर के बारे में कहा जाता है कि मौजूदा समय में बिहार के दिग्गज कहलाने वाले सभी नेता इन्हीं से राजनीति का 'क, ख, ग' पढ़े हैं. इनकी ईमानदारी का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री और लंबे समय तक राजनीति से जुड़े रहने वाले इस नेता के खाते में सिर्फ़ 500 रुपए निकले थे. दो बार बिहार का सीएम रहने के बाद वो अपने परिवार के लिए एक घर तक नही बना पाए थे.

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24 जनवरी 1924 को जन्में कर्पुरी ठाकुर बिहार में दो बार सीएम बने. 1952 वो पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. उनका जीवन कितना सादा और सच्चा था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीन दशक से अधिक वक्त तक लगातार ब‍िहार चुनाव जीतने के बाद भी वे रिक्शे पर चलते थे. उनका चिर परिचित नारा था, "अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अड़ना सीखो जीना है तो मरना सीखो"

कपरी ठाकुर की उपलब्धियों की बात करें तो वो अपनी कार्यशैली से जननायक बने. कर्पूरी ठाकुर का जीवन ताउम्र संघर्ष रहा. 1970 में उनके कार्यकाल में ही राज्य में आठवीं तक की शिक्षा फ्री कर दी गई. यही नहीं सरकार ने 5 एकड़ तक की ज़मीन पर मालगुज़ारी भी खत्म कर दी. वहीं, जब 1977 में वो दोबारा मुख्यमंत्री बने तो बिहार ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना.

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पूरा जीवन आप लोगों को समर्पित करने वाला ये जननायक 17 फरवरी 1988 को अचानक ईश्वर को प्यार हो गया. जानकारी के मुताबिक अचानक से तबीयत बिगड़ने से उनका निधन हो गया था. 

Source: Indiatimes

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