संसार में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के मन में यह मृत्यु और जीवन के विषय में तमाम प्रश्न अवश्य आते है,किसी ना किसी माध्यम से जीवन में हर इंसान मृत्यु का रहस्य जानने की चेष्ठा जरूर करता है। और जो इन महत्वपर्ण प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर लेता है,उसके लिए संसार में कुछ और प्राप्त करना शेष नहीं रहता है। बड़े—बड़े संत, महात्मा और ज्ञानी इसके लिए पूरा जीवन समर्पित कर देते है,पर इन प्रश्नों के उत्तर से अनभिज्ञ ही रहते है।ऐसे में अगर कोई बालक इन ना सिर्फ इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चिंतन करें बल्कि स्वयं यम से इनका उत्तर प्राप्त करे तो आप इसे क्या मानेंगे...!एक बालक की कठोर जिद के समक्ष यमराज को मृत्यु के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन करना पड़ा था।वह बालक थे ऋषि वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता,जिन्होंने ना सिर्फ यमराज से मृत्यु का रहस्य जाना था बल्कि अपने पिता की कही बात को सत्य कर दिखाया था। ये कहानी कठोपनिषद् की है। कठोपनिषद् प्रमुख उपनिषदों में से एक है। मूलतः ये उपनिषद नचिकेता और यमराज के संवाद का ही ग्रंथ है। वाजश्रवा नाम के ऋषि की संतान थे नचिकेता। वाजश्रवा ने एक यज्ञ का आयोजन किया, यज्ञ की समाप्ति पर वो ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को दान दे रहे थे।इसी बात पर जब नचिकेत ने अपने पिता वाजश्रवा से पूछा कि जब आप सारी संपत्ति दान कर रहे है तो मुझे किसे दान करेंगे...!अपने कार्य में संलंग्न पिता ने क्रोध वश बालक से कहा कि मैंने तुझे यम को दान कर दिया है।पिता की बात सुनते है ही नचिकेता बगैर कुछ सोचे यमलोक की ओर बढ़ चले। तीन पहर चलने के बाद नचिकेता यमलोक के द्वार पर पहुंचता है जहां यमलोक दूत खड़े है,वह बालक से सवाल करते है तू कौन है और यहां कैसे आया है....!नचिकेता अपना परिचय देते हुए कहता है मेरे पिता के आदेश पर। इस पर यमदूत कहते है यमराज यहां नहीं है,तीन दिनों पश्चात लौटेंगे।नचिकेता तीन दिनों तक भूखे प्यासे रहकर यम की प्रतीक्षा करते रहा।तीन दिनों बाद जब यमराज लौटे तो नचिकेता को देखकर आश्चर्य से भर गए और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उससे तीन वर मांगने को कहा।
नचिकेता ने कहा, पहला वरदान ये कि मैं जब मेरे पिता के पास लौट जाऊं तो उनका गुस्सा शांत हो जाए। दूसरा ये कि आप मुझे अग्नि विद्या का ज्ञान दें, ताकि मैं लोगों का भला कर सकूं और तीसरा मुझे जीवन और मृत्यु से जुड़े सवालों का जवाब दीजिए, इससे जुड़े रहस्य मुझे बताइए। पहले दो वरदान तो यमराज ने मान लिए लेकिन तीसरे के लिए उन्होंने इनकार किया।
अचानक उसे ध्यान आया कि मेरे पिता ने यज्ञ स्वर्ग की प्राप्ति के लिए किया था। क्यों न मैं ही उसे मांगूं? यह सोचकर वह बोला- 'मुझे स्वर्ग की प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है?'
यमराज चक्कर में पड़ गए, पर वचन दे चुके थे। इसलिए उन्होंने वह भी बता दिया और तीसरा व अंतिम वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता कुछ समय तक सोच में डूबा रहा।
फिर बोला- 'आत्मा का रहस्य क्या है? कृपया समझाएं।'
नचिकेता के मुख से इस प्रश्न की आशा यमराज को बिलकुल न थी। उन्होंने उसे और कोई वरदान मांगने को कहा और बोले- 'यह विषय इतना गूढ़ है कि हर कोई इसे नहीं समझ सकता।' पर नचिकेता अपनी बात पर अड़ा रहा और निर्णायक स्वर में बोला- 'अगर आपको कुछ देना ही है तो मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें अन्यथा रहने दें, क्योंकि मुझे अन्य कोई भी वस्तु नहीं चाहिए। नचिकेता के सवाल पर यमराज को जवाब देना पड़ा। यमराज ने कहा, किसी की मौत क्यों होती है, इसे समझाना बहुत कठिन है, ये कर्मफल का परिणाम भी है, भाग्य का लेख भी है, जो भी संसार में जीवन पाता है, उसका वहां रहने का एक तय समय होता है। इसके बाद उसे किसी ना किसी रुप में संसार को छोड़ना ही पड़ता है। नचिकेता ने पूछा, मृत्यु किन लोगों को पीड़ा नहीं देती? यमराज ने कहा, जिसने पाप ना किया हो, जो दूसरों को पीड़ा नहीं देता हो, जो सत्य के मार्ग पर चलता हो, जिसने अपने धर्म और कर्तव्य का पूरी निष्ठा से पालन किया हो, उसे मृत्यु कोई पीड़ा नहीं देती है। यमराज से प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर नचिकेता अध्यन और ज्ञानार्जन में जुट जाता है,और पूरे संसार में अपना एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त करता है।इस पूरे प्रसंग को ऋषि कठ ने कठोपनिषद् के रूप में प्रस्तुत किया है।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें