एक छोटे से शहर से जीवन के सबक...

 मै उस वक्त 3 साल का था जब हम पहले एक छोटे से शहर में रहते थे ठीक उसी छोटे से अपार्टमेंट की तरह जहा में आज रह रहा हु ! उस शहर में सभी कार्यो के लिए अपना एक अलग ही स्थान था जैसे- फीड स्टोर, बैंक, पिग्ली-विग्ली, नाई की दूकान, मेथोडिस्ट चर्च, बैपटिस्ट चर्च, प्रांगन, फार्मेसी और डाकघर भी था, जहा से मेने अपने अपने जन्मदिन के लिए सभी को निमंत्रण पत्र भेजा था! जन्मदिन की पार्टी की तस्वीरे देखता हू तो सारी यादे ताजा हो जाती है मेने अपने बालो में एक बड़ा लाल धनुष लगा रखा है, मुझे मिलने वाले तोहफे, हसी-ठिठौली और मेरा बहुत बड़ा केक !

एक छोटे से शहर से मेने जीवन जीने के कई सबक सीखे है और ये भी जाना है कि दुनिया कैसे काम करती है ! मेरी बढती हुई उम्र के साथ मिलने वाली समझ, अनुभव मेरे जीवन में गहरी चाप छोड़ते है! 

उस शहर से मेरी नागरिकता जल्द ही खत्म हो गयी! और पिताजी हमे इस अपार्टमेन्ट में वाशिगंटन डीसी में ले आये, लेकिन में फिर भी उस छोटे शहर से जुड़ा रहा जिसने मुझे कई चीजे सिखाई जैसे- सड़को पर मिलने वाले संकेत को कैसे पहचाना जाए, पुस्कालय में किताबे कैसे वापस की जाती है, अपने से छोटे या बड़ो से किस तरह बात की जाती है और सबसे बड़ी बात की डाकघर का उपयोग कैसे किया जाता है! ये छोटे शहर की शिक्षाए है जो मेरे पास हमेशा रहेगी-

यदि आप खुद के लिए कुछ करना चाहते है तो स्वयं करे 

उस छोटे शहर से मैंने एक बात यह भी सीखी की यदि हम खुद के लिए कुछ करना चाहते है तो उसके लिए दुसरो पर निर्भर होना ठीक नही! यदि आप एक टीम लीडर भी है तो सबसे पहले आप अपनी टीम के कामो को खुद करे! यदि आप अपने जीवन को व्यवस्थित करना चाहते है तो आप अपने मष्तिष्क के साथ साथ अपने दोनों हाथो का भी उपयोग करे! आत्मनिर्भरता हमे कभी किसी के सामने झुकने नही देती या यु कह ले कि यह स्वतंत्रता का अवसर है ! मेरे दादाजी टमाटर खरीदने के लिए शनिवार को किसान बाज़ार जा सकते थे लेकिन उन्होंने घर के पिछवाड़े में ही टमाटर उगा रखे थे ! मेरी दादी भी अपने आप को प्रतिभाशाली नही मानती थी लेकिन फिर वो मेरे कपड़े सीना उसमे बटन लगाना अच्छे से जानती थी !

यदि आज हम चाहे तो यू ट्यूब के माध्यम से घर बैठे किसी भी तरह का कोशल सिख सकते है ! दुसरे के दिखाए तरीको को कॉपी करने की आदत भी हो गयी है अपने आप कुछ नया करना हम भूल ही गये है ये बात कडवी है लेकिन सत्य है !

हममे से कई लोग ऐसी जगह पर रहते है जहा आत्मनिर्भर बनने जेसी सोच को दबा दिया जाता है और ये काम भी हम स्वयं करते है! यदि हम अपना काम स्वयं करते है अपने हमे बेहतर परिणाम प्राप्त होते है, इसलिए यदि आप कुछ सिख सकते है तो उसे सीखे, क्योकि आप उसे कर सकते है!

यदि आप किसी से मदद लेते हो तो उसकी मदद करना भी सीखो 

छोटे शहरों की सबसे ख़ास बात यह थी कि वहा के लोग समय आने पर एक-दुसरे की मदद करना जानते थे ! उनका ये नेटवर्क बहुत ही शक्तिशाली था !मै अपने दादा-दादी के साथ रहता था जब वे बीमार थे तब पड़ोसियों ने उनका बहुत ख्याल रखा, दोस्तों ने खाना लाकर दिया, ड्राई-क्लिनिग जैसे कई कामो में मदद की ! 

एक दुसरे की मदद करना जैसे उनकी दैनिक दिनचर्या में शामिल था, लेकिन यहा आने के बाद मुझे लगा की मेरी यात्रा उनके साथ सिर्फ इतनी ही थी! में एक सहकर्मी समूह से सम्बन्धित हु जिसमे किसी की थोड़ी मदद पर भी आभार व्यक्त करता हु ! में एक ऐसा इंसान बनना चाहता हू जो अवसर मिलने पर लोगो की अर्थपूर्ण सहायता कर सके !

इसमें एक बात ध्यान देने योग्य है कि यदि आप दुसरो को जो दे रहे है क्या वह आपके लिए सही है? यदि वह आपके लिए सही है तभी आप दुसरो को दे ! अत: आवश्कता है तो किसी से मदद ले, लेकिन उसकी मदद करने के लिए भी हमेशा तैयार रहे! 

समुदाय का अर्थ है अंतर का भाव हटाकर समानता पर जोर देना 

छोटे शहरो में सभी को एक समान नजरिये से देखा जाता है ये धारणा बिलकुल गलत है !सच तो यह है कि वहा आलोचना करने वाले भी बहुत है !ग्रामीण समुदाय में धर्म, संस्क्रती, विचारधारा पर ज्यादा जोर दिया जाता है ! छोटे शहरो के अस्तित्व के लिए सभी के विचारों का एक होना जरुरी है लेकिन प्रथ्वी पर सभी के विचार एक जैसे नही होते ! हम इस बात को भी नकार नही सकते कि लोग अजीब या बहुत अजीब होते है! 

मनुष्यों में अपनापन पैदा करने के लिए स्वाभाविक प्रवृत्ति आवश्कता होती है! मुक्त विचारों वाले या अपने विचारों को सीमाओं में बाँधने वाले कई लोगो से में उस शहर में मिला हू, लोगो से शुरूआती जान-पहचान मेरी वही हुई! 

यदि आप रूचि रकते है तो सब कुछ दिलचस्प होता है!

जब में बच्चा था और अपने पिताजी के साथ लम्बी सैर पर जाता था तब की चाल और अब की चाल में भी बहुत अंतर आगया है मतलब जैसे-जैसे आप बड़े होते है चीजे बदलने लगती है यह सब ग्रामीण लोग भली-भांति समझते है ! मेरे दादाजी किसान परिवार से थे इसलिए वे मुझे पोधे के डंठल के रंग के बारे में उसके बड़ने के बारे में बताया करते थे ! 

एक बार यदि आपका मन किसी चीज को करने में लग जाए वह चीज भले ही छोटी या तुच्छ क्यों नह हो आपको रचनात्मक लगती है और आपकी रूचि उसमे बड़ने लगती है, आप उसे खुलेपन और अधिक जिज्ञासा से देखते है ! इसलिए थोडा ही सही या छोटा ही सही आप अपने पास एक लक्ष्य रखे ! उससे दुनिया आपको रुचिकर लगने लगती है!

अध्ययनों से पता चलता है की बड़े शहरों से ज्यादा, छोटे शहर(ग्रामीण लोग) खुश रहते है उसके कई कारण है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नही की हर कोई ग्रामीण जीवन में खुश होगा ! 

मेरी बुकशेल्फ में उस घर की एक फ्रेमयुक्त तस्वीर है जहा मेरे दादा-दादी ने अपने जीवन के अंतिम 20 वर्ष एक साथ बिताये ! उस घर में कितनी रोनक थी वह घर मेरा पहला स्कूल था ! वहा की दुनिया भले ही छोटी थी लेकिन वह पूरी दुनिया का अनुभव करवाती थी ! वहा की ख़ास बात यह है कि वहा लोगो के पास जो कुछ भी होता है वे उसी का उपयोग कर अपने जीवन को आनंद के साथ बिताते है ! शायद इसलिए उन्हें उनकी बनाई दुनिया ही रुचिकर लगती है! 

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